राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और केंद्रीय सूचना आयोग- GK ANYWHERE
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
स्थापना -
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन संसद द्वारा पारित अधिनियम, मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत किया गया था।
- यहां एक सांविधिक (संवैधानिक नहीं) निकाय है।एक स्वायत्त संस्थान के रूप में इसकी स्थापना 12 अक्टूबर 1993 को की गई थी।
संरचना -
- यह आयोग एक बहु-सदस्यीय संस्था है। जिसमें एक अध्यक्ष व चार सदस्य होते हैं। इसका अध्यक्ष भारत का कोई सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होता है।
- एक सदस्य सर्वोच्च न्यायालय में कार्यरत अथवा सेवानिवृत्त न्यायाधीश तथा एक उच्च न्यायालय का कार्यरत अथवा सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए।
- दो अन्य वैसे व्यक्ति इसके सदस्य होते हैं, जिन्हें मानवाधिकार से संबंधित जानकारी तथा कार्य अनुभव होता है।
- इसके अलावा चार पदेन सदस्य - राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति व राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग तथा राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष होते हैं।
- आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष अथवा उनकी आयु 70 वर्ष (जो भी पहले हो) का होता है।
महत्वपूर्ण तथ्य -
- यह आयोग उन सभी प्रकार के मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करता है। जो उसके सामने पेश किए जाते हैं।फिर वह चाहे पीड़ित के द्वारा लाया गया हो, या उसके बदले किसी और ने सामने रखा हो।
- न्यायालय में लंबित किसी मानवाधिकार के मामले में हस्तक्षेप करना।
- मानवाधिकार की रक्षा से संबंधित बनाए गए संवैधानिक और विधिक उपबंधों की समीक्षा करना तथा इनके प्रभावी कार्यान्वयन की सिफारिश करना।
- आम लोगों के बीच मानवाधिकारों के संबंध में जागरूकता तथा जानकारी फैलाना।
- मानव अधिकारों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संधियों व दस्तावेजों का अध्ययन करना।तथा उनको प्रभावशाली तरीके से लागू करने की सिफारिश करना।
- गैर सरकारी संगठनों के द्वारा मानवाधिकारों के क्षेत्र में किए जा रहे प्रयासों की सराहना करना।
- जेलों तथा कारावासों में जाकर वहां की स्थिति का अध्ययन कर उसके बारे में सिफारिश करना।
कार्य प्रणाली तथा भूमिका
- आयोग के पास सिविल न्यायालय जैसे सभी अधिकार एवं शक्तियां हैं तथा इसका चरित्र न्यायिक प्रकार का है।
- यह आयोग मानवाधिकार उल्लंघन के दोषी को दंड नहीं दे सकता है, ना ही पीड़ित को किसी प्रकार की आर्थिक सहायता देता है। आयोग द्वारा की गई सिफारिश सरकार अथवा अधिकारी पर बाध्यकारी नहीं होगी।
केंद्रीय सूचना आयोग
- केंद्रीय सूचना आयोग की स्थापना वर्ष 2005 में केंद्र सरकार द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत की गयी थी।
- केंद्रीय सूचना आयोग एक उच्च अधिकार युक्त स्वतंत्र निकाय है, जो केंद्र सरकार एवं केंद्र शासित प्रदेशों के अधीन आने वाले सभी कार्यालयों, वित्त संस्थानों एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की शिकायतों को सुनता है।
सदस्य
- केंद्रीय सूचना आयोग में एक अध्यक्ष के अलावा अधिकतम 10 अन्य सूचना आयुक्त होते हैं, जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर की जाती है।
- मुख्य सूचना आयुक्त एवं आयुक्तों का कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु दोनों में से जो भी पहले हो तक होता है।
अधिकार
- इसकी शक्तियां एवं कार्य भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त के समान होती है।यह केंद्र सरकार तथा केंद्र शासित प्रदेशों के अंतर्गत आने वाले वित्तीय संस्थानों, लोक उपक्रमों की शिकायतों की जांच करता है।
कार्य
- यह आयोग उपभोक्ता विवादों का तीव्र गति से निपटारा करता है। इन आयोगो को जिला मंच के रूप में भी जाना जाता है।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986, की धारा 21 के तहत राष्ट्रपति उपभोक्ता निवारण आयोग एक करोड़ या उससे अधिक मामलों का निपटारा करता है।
- इसके अलावा उसे राज्य उपभोक्ता निवारण आयोग द्वारा दिए गए निर्णयों को भी सुनने का अधिकार प्राप्त है।
- इस आयोग के पास तीन प्रकार के क्षेत्राधिकार अर्थात मूल, अपीलीय और पुनरीक्षण जैसे अधिकार शामिल हैं। इस आयोग के निर्णयों के विरुद्ध अधिनियम की धारा 23 के तहत सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की जा सकती है।
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