दक्षिण भारत के महान राजवंश।सातवाहन वंश, पल्लव वंस,और चालुक्य वंश।

 

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दक्षिण भारत के महान राजवंश

प्राचीन भारतीय इतिहास में जहाँ उत्तर भारत में मौर्यों एवं गुप्तों के अधीन विशाल साम्राज्य की स्थापना हो रही थी, वहीं दक्षिण भारत में अनेक छोटे महान राजवंशों का उदय हो रहा था। दक्षिण के इन महान राजवंशों के अंतर्गत दक्षिण भारत की राजनीतिक, सांस्कृतिक व्यवस्था एवं साहित्य का अत्यधिक विकास हुआ। इनका विवरण निम्नलिखित है।

● सातवाहन वंश

  • सातवाहन वंश का संस्थापक सिमुक था। उसका राज्य काल सामान्यतः 60 ईसा पूर्व से 37 ईसा पूर्व तक माना जाता है।
  • पुराणों में सातवाहन वंश को आंध्रमृत्य कहा गया है। इस वंश के इतिहास की जानकारी मुख्य रूप से मत्स्य तथा वायु पुराण से मिलती है।
  • इस वंश के शासकों की राजधानी गोदावरी नदी के किनारे स्थित पैठान या प्रतिष्ठान से थी। इसके शासकों को दक्षिणाधिपति तथा इनके द्वारा शासित प्रदेश को दक्षिणायथ कहा जाता है।
  • शातकर्णी प्रथम इस वंश का पहला महत्वपूर्ण शासक था। इसकी उपलब्धियों की जानकारी नागनिका के नानाघाट अभिलेख से मिलती है। भूमिदान का पहला साक्ष्य इसी अभिलेख से प्राप्त होता है।
  • शातकर्णी प्रथम ने 2 अश्वमेघ में 1 तथा एक राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान किया था। पुराणों में इसे कृष्ण का पुत्र कहा गया है।
  • सातवाहन वंश में हाल एक महानतम शासक था। हाल ने गाथासप्तशती नामक एक मुक्तक काव्य रचना की थी। यह प्राकृत भाषा में लिखी गई है।
  • सातवाहन वंश का सबसे महानतम शासक गौतमीपुत्र शातकर्णी था।इसकी उपलब्धियों की जानकारी इसकी माता बलश्री के नासिक अभिलेख से प्राप्त होती है।
  • यज्ञश्री सातकर्णि(174 - 203 ई.) इस वंश का अंतिम महत्वपूर्ण शासक था। इसके सिक्के पर नाव का चित्र अंकित था। सातवाहन साम्राज्य के अवशेष पर इक्ष्वाकु वंश की स्थापना हुई।

● इक्ष्वाकु वंश

  • इक्ष्वाकु वंश के शासक प्रारंभ में सातवाहनों के सामंत थे, किंतु उनके पतन के पश्चात इक्ष्वाकुओं ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।
  • इस वंश का संस्थापक श्रीशांतमूल था। इसका शासन कृष्णा-गुंटूर क्षेत्र में स्थापित था। इसने अश्वमेघ यज्ञ करवाया था तथा वैदिक कार्य का अनुयायी था।
  • श्रीशांतमूल का पुत्र माठरिपुत्र वीरपुरुषदत्त उसका उत्तराधिकारी बना। इसने 20 वर्षों तक शासन किया। अमरावती तथा नागार्जुनीकोंड में उसके लेख मिलते हैं। इनमें बौद्ध संस्थाओं को दिए जाने वाले दान का विवरण है।
  • वीरपुरुषदत्त का पुत्र तथा उत्तराधिकारी शांतमूल द्वितीय हुआ। इसने 11 वर्षों तक शासन किया। इसके बाद इक्ष्वाकु वंश की स्वतंत्रता सत्ता का लोप हो गया।
  • कालांतर में पल्लवों ने इनके राज्य को ग्रहण कर लिया।

● पल्लव वंश

  • पल्लव वंश का संस्थापक सिंह विष्णु(565 - 600) को माना जाता है यह वैष्णव धर्मानुयायी था।
  •  पल्लवों की राजधानी कांची (चेन्नई स्थित कांचीवाराम) प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान भारवि (किरातार्जुनीयम् के लेखक)सिंह विष्णु के दरबार में रहते थे।
  • महेंद्रवर्मन प्रथम(600 - 630) ने संस्कृत भाषा में मतविलास प्रहसन्न की रचना की। उसने चित्रकला को प्रोत्साहित किया।
  • नरसिंह वर्मन प्रथम (630 - 668) ने मामल्लापुरम तथा कांची के मंदिरों का निर्माण करवाया था।
  • इन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग कांची आया था। नरसिंह ने वातापीकोंड की उपाधि धारण की थी।नरसिंह वर्मन द्वितीय ने कांची के कैलाश नाथ मंदिर तथा महाबलिपुरम का शोर मंदिर बनवाया था। उस के दरबार में दाण्डी नामक विद्वान रहता था जिसने दसकुमारचरित नामक काव्य की रचना की थी।
  • दक्षिण में वैष्णव आंदोलन का आरंभ सर्वप्रथम पल्लवों के शासनकाल से ही हुआ था। उसके बाद दक्षिण के अन्य भागों तक पहुंचा था।

● बादामी के चालुक्य

  • बादामी के चालुक्य वंश की स्थापना पुलकेशिन प्रथम ने की थी। इसने अपने शासनकाल में कई अश्वमेघ यज्ञ करवाए थे।
  • बादामी के चालुक्य वंश के इतिहास की जानकारी हमें ऐहोल अभिलेख से मिलती है।इसकी भाषा संस्कृत तथा लिपि दक्षिणी ब्राह्मी भी है।इसकी रचना रवि कीर्ति ने की थी।
  • कीर्तिवर्मन प्रथम को वातापी का प्रथम निर्माता माना जाता है। इसने पृथ्वी वल्लभ जैसी उपाधि धारण की थी।
  • पुलकेशिन द्वितीय इस वंश का सबसे महान शासक था।अपने चाचा मंगलेश की हत्या करके वह 609-10 ई. में शासक बना था।
  • पुलकेशिन द्वितीय का वर्धन वंश के शासक हर्षवर्धन से नर्मदा नदी के तट पर युद्ध हुआ था।
  • पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख से जानकारी प्राप्त होती है कि इस युद्ध में पुलकेशिन द्वितीय ने हर्षवर्धन को पराजित कर दिया था।

● कल्याणी के चालुक्य

  • तैलप द्वितीय को कल्याणी के चालुक्य वंश का संस्थापक माना जाता है। इस वंश का उदय राष्ट्रकूटों के पतन के पश्चात था।
  • सोमेश्वर प्रथम 1043 ई. में शासक बना उसने अपनी राजधानी मान्यखेत से कल्याणी में स्थानांतरित की थी।
  • चोलों से निरंतर पराजय के पश्चात उसने तुंगभद्रा नदी में डूब कर आत्महत्या कर ली थी।
  • कल्याणी के चालुक्य वंश का अंतिम शासक तैल तृतीय का पुत्र सोमेश्वर चतुर्थ था।
  • चालुक्यों का पारिवारिक चिन्ह वाराह था। इनके शासनकाल में ग्राम के अधिकारी गामुंड कहलाते थे।

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